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कितनी मुश्किल
कौन धूप सा
दानिशमंदों के झगड़े
सच के हक में
सबकी सुनना

अंजुमन में-
उससे मिल आए हो
सबका यही खयाल
काम करेगी उसकी धार
जुगनू बन या तारा बन
टूट जाने तलक

सच कहना और पत्थर खाना
सच का कद
सरहदें नहीं होतीं

  उससे मिल आये हो

उससे मिल आये हो लगा कुछ कुछ
आज ख़ुद से हो तुम जुदा कुछ कुछ

दिल किसी का दुखा दिया मैंने
ज़िन्दगी मुझसे है खफ़ा कुछ कुछ

मेरी फ़ितरत में सच रहा शामिल
अपना दुश्मन ही मैं रहा कुछ कुछ

आग पी कर भी रोशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ कुछ

उलझे धागों से हमने समझा है
ज़िन्दगानी का फ़लसफ़ा कुछ कुछ

१० अक्तूबर २०११

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