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अनुभूति में कुंवर बेचैन की रचनाएँ—

हाइकु में-
वर्षा हाइकु

गीतों में—
ओ बासंती पवन

दोहों में—
नौ दोहे

अंजुमन में—
अंगुलियाँ थाम के
कफ़न बाँधकर
करो हमको न शर्मिंदा
खुद को नज़र के सामने
दो दिलों के दरमियाँ
दोनो ही पक्ष
धुआँ
नीर की गठरी
प्यासे होंठों से
फिर युधिष्ठिर को पुकारा
बीती नहीं है रात
मत पूछिए

 

नीर की गठरी

नीर की गठरी में वो फिर आग भर कर आ गए
देखिये आकाश में बादल उभर कर आ गए

तै तो यह था जुल्म के नाखून काटे जाएँगे
लोग नन्हीं तितलियों के पर कतर कर आ गए

जल रहा है दिल हमारा यह बताने के लिए
हम किसी के द्वार पर एक दीप धर कर आ गए

धूप निकली तो हमें उसने भी अंधा कर दिया
कैसे कह दें हम अंधेरों से उबर कर आ गए

घर में आँखों के कोई सीढ़ी न थी फिर भी 'कुँअर'
अश्क जाने कौन-सी सीढ़ी उतर कर आ गए

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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