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अनुभूति में कुंवर बेचैन की रचनाएँ—

हाइकु में-
वर्षा हाइकु

गीतों में—
ओ बासंती पवन

दोहों में—
नौ दोहे

अंजुमन में—
अंगुलियाँ थाम के
कफ़न बाँधकर
करो हमको न शर्मिंदा
खुद को नज़र के सामने
दो दिलों के दरमियाँ
दोनो ही पक्ष
धुआँ
नीर की गठरी
प्यासे होंठों से
फिर युधिष्ठिर को पुकारा
बीती नहीं है रात
मत पूछिए

 

फिर युधिष्ठिर को पुकारा

फिर युधिष्ठिर को पुकारा है समय के यक्ष ने
कान में इतना ही पीपल के कहा वटवृक्ष ने

यह न कहिएगा कि यह आयोजकों का दोष है
यह सभा खुद ही विसर्जित की सभा अध्यक्ष ने

अब हमें शूलों की भी राहों पै चलना आ गया
यह बड़ा अच्छा हुआ काँटे दिए प्रतिपक्ष ने

द्वार पर कब आएगा दीपावली का जन्म दिन
हर कलैंडर से यही पूछा अंधेरे कक्ष ने

खून का कतरा कोई दिल में न बच पाएगा कल
इस कदर चोटें सही हैं इस सदी के वक्ष ने

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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