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अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से

अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना

गजल कहू
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर सिला धोखा

  कड़ी है धूप

कड़ी है धूप चलो छाँव तले प्यार करें
जहाँ ठहर के वक़्त आँख मले प्यार करें

नज़रिया बदलें तो दुनिया भी बदल जाएगी
भुला के रंजिशें, शिकवे-ओ-गिले प्यार करें

वफ़ा ख़ुलूस के जज्बों से लबालब होकर
फूल अरमानों का जब-जब भी खिले प्यार करें

दिलों के दरमियाँ रह जाये न दूरी कोई
चराग़ दिल में कुर्बतों का जले प्यार करें

तमाम नफ़रतें मिट जाये दिलों से अपने
तंग एहसास कोई जब भी खले प्यार करें

कौन अपना या पराया नदीश छोड़ो भी
मिले इंसान जहाँ जब भी भले प्यार करें

२ सितंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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