अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से

अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना

गजल कहू
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर सिला धोखा


 

  खोया है कितना

खोया है कितना, कितना हासिल रहा है वो
अब सोचता हूँ कितना मुश्किल रहा है वो

जिसने अता किये हैं ग़म ज़िन्दगी के मुझको
खुशियों में मेरी हरदम शामिल रहा है वो

क्या फैसला करेगा निर्दोष के वो हक़ में
मुंसिफ बना है मेरा कातिल रहा है वो

पहुँचेगा हकीकत तक दीदार कब सनम का
सपनों के मुसाफिर की मंज़िल रहा है वो

कैसे यक़ीन उसको हो दिल के टूटने का
शीशे की तिज़ारत में शामिल रहा है वो

तूफां में घिर गया हूँ मैं दूर होके उससे
कश्ती का ज़िन्दगी की साहिल रहा है वो

ता उम्र समझता था जिसको "नदीश" अपना
गैरों की तरह आकर ही मिल रहा है वो

७ मई २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter