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                  अनुभूति में 
                  प्रभा दीक्षित की रचनाएँ— अंजुमन में—कभी मुझसे कोई आकर
 जाने कितने लोग खो गए
 नदी की बाढ़ में
 यों भरोसा तो 
					नहीं
 हरी डाल से
 |  | हरी डाल से
 हरी डाल से चिड़िया उतरी, दाना चुगती पेड़ तले
 मुझको ऐसा लगा कि जैसे मन के सारे दीप जले।
 
 धूप-छाँव के बँटवारे में कभी जानवर लड़े नहीं
 आदमकी तारीख कह रही हम अपनों से गए छले।
 
 जंग किसी की मजबूरी है और किसी का सौदा है
 जहाँ-जहाँ बारूद मिली है, वहाँ-वहाँ बाजार मिले।
 
 मालिक की तहजीब मातहत की बेड़ी बन जाती है
 तब-तब आग लगी बस्ती में, जब आँगन में फूल खिले।
 
 जलती हुई मशालें लेकर अँधियारे की बस्ती में
 अपनी बोली-बानी लेकर गजल चली या गीत चले!
 
 १६ सितंबर २०१३
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