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अनुभूति में प्रभा दीक्षित की रचनाएँ

अंजुमन में—
कभी मुझसे कोई आकर
जाने कितने लोग खो गए
नदी की बाढ़ में

यों भरोसा तो नहीं
हरी डाल से

 

यों भरोसा तो नहीं

यों भरोसा तो नहीं लेकिन किसी दिन आएगा
चंद टूटे ख्याब मेरी आँख से ले जाएगा।

इस मोबाइल ने कई नंबर बदल डाले हैं दोस्त
क्या पुराने खत जलाकर रोशनी पा जाएगा?

बिक रही है जो बजारों में मुहब्बत की किताब
उसके मकसद का किसी दिन फैसला हो जाएगा।

बंद कमरे की खुली खिड़की से आती धूप में
आइना खुद अपना चेहरा देखता रह जाएगा।

मेरी बाँहों से लिपटकर सो रहा कोई यकीन
रफ्ता-रफ्ता ये किसी दिन होश में आ जाएगा।

जिसने देखा है जमाने में उजाले का वजूद
वो अँधेरे से ’प्रभा‘ के साथ में टकराएगा!

१६ सितंबर २०१३

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