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अनुभूति में राजकुमार कृषक की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आखर
चाँद कहिए
धूप निकली
परबत के पैंताने
लड़कियाँ

  आखर

आखर-आखर आँखें हैं
कोंपल-कोंपल शाखें हैं

अंबर तो खाली अंबर
धरती की सौ पाँखें हैं

मरहम-मरहम हाथ कहाँ
अब तो सिर्फ़ सलाखें हैं

जब से वो लौटे पढ़कर
जाने क्या-क्या भाखें हैं

दिल की हालत पूछो हो
ढलती उम्र कुलाँचे हैं!

२३ नवंबर २००९

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