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अनुभूति में राजकुमार कृषक की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आखर
चाँद कहिए
धूप निकली
परबत के पैंताने
लड़कियाँ

  धूप निकली

धूप निकली और मौसम खुल गया
आसमाँ का चेहरा भी धुल गया

खिड़कियाँ खुलकर मिलीं, कहने लगीं
रंग रिश्तों का फिज़ाँ में घुल गया

टूटना संबंध का कुछ यों लगा
ज्यों सफ़र के बीच कोई पुल गया

दर्द कुछ गहरा गया, तड़पा गया
पास से गाकर कोई बुलबुल गया

हम उसे गाते रहे, सुनते रहे
उनका बाजूबंद जो खुल-खुल गया!

२५ नवंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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