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अनुभूति में डॉ राकेश जोशी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
कठिन है
कैसे कह दूँ
चाहती है
डर लगता है

मैं सदियों से

अंजुमन में-
अंधकार से लड़ना है
कैसे कैसे लोग शहर में
आज फिर से

जैसे-जैसे बच्चे

 

जैसे जैसे बच्चे

जैसे-जैसे बच्चे पढ़ना सीख रहे हैं
हम सब मिलकर आगे बढ़ना सीख रहे हैं

आज हवाओं में हलचल है, बेचैनी है
बन्दर फिर पेड़ों पर चढ़ना सीख रहे हैं

भूख मिटाने को खेतों में जो उगते थे
गोदामों में जाकर सड़ना सीख रहे हैं

कहाँ मुहब्बत में मिलना मुमकिन होता है
इसीलिए हम रोज़ बिछड़ना सीख रहे हैं

नदी किनारे बसना सदियों तक सीखा था
गाँवों में अब लोग उजड़ना सीख रहे हैं

धूप निकल कर फिर आएगी इस धरती पर
दुनिया को हम लोग बदलना सीख रहे हैं

४ अगस्त २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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