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अनुभूति में डॉ. ऋषिपाल धीमान की रचनाएँ-

अंजुमन में-
क्यों फ़ासिले
खुले ही रहते थे
तुमने छुआ था
मुझको रोके थी अना
लग रहा है

समझेगा कोई कैसे

कविताओं में-
होली चली गई

  क्यों फ़ासिले

क्यों फासिले-से आ गए हैं अब दिलों के बीच
भरनी हैं कुछ मुहब्बतें इन फासिलों के बीच।

बेकारियाँ हैं मुफलिसी लाचारियाँ बहुत
ज़िन्दा हैं अपने लोग इन्हीं कातिलों के बीच।

तूफाँ से क्या गिला करें मौजों से क्या गिला
जिसका सफ़ीना डूब गया साहिलों के बीच।

जलसे, जुलूस, रैलियों में खो गया जहाँ
तन्हाइयों का ज़िक्र है अब महफ़िलों के बीच।

काँधे पे उसके हाथ रखा तो वो रो पड़ा
हँसता रहा हमेशा ही जो मुश्किलों के बीच।

१६ दिसंबर २००४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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