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अनुभूति में संजीव गौतम की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
दरोगा है वो दुनिया का

धूप का कत्ल
मैंने अपने आपको
यही सूरत है अब तो
सजा मेरी खताओं की

अंजुमन में—
कभी तो दर्ज़ होगी
जिगर का खूं
झूठ
तुम ज़रा यों ख़याल करते तो
पाँव के छाले
सियासत कह रही है

 

तुम ज़रा यूँ ख़याल करते तो

तुम ज़रा यूँ ख़याल करते तो
मुश्किलों से बिसाल करते तो

हार जाते घने अँधेरे भी
कोशिशों को मशाल करते तो

मंज़िलों के निशां बता देते
रास्तों से सवाल करते तो

ज़िंदगी और भी सरल होती
इसको थोड़ा मुहाल करते तो

यूँ न होते उसूल बेइज़्ज़त
इनकी जो देखभाल करते तो

९ अप्रैल २००६   

 

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