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अनुभूति में ब्रज श्रीवास्तव की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आज की सुबह
क्रूरता
खबर के बगैर
तब्दीली
तुम्हारी याद का आना
न जाने कौन सी भाषा से
भव्य दृश्य

 

खबर के बगैर

सुबह से ही हम प्यासे हो जाते हैं
खबरों की चाय पीने के लिए
रात तक हमारे कान लगे होते हैं
सुनने के लिए कोई चटपटी ख़बर

हम अपने बच्चों को नई-पुरानी
ख़बर ही पढ़ा रहे होते हैं
जानकार, कलाकार और व्यापारी
अपनी तरक्की की राह में इन्हें ही
करते हैं पार

खबर के बग़ैर नहीं कर सकते ख़रीदारी हम
चिकित्सक के द्वार तक नहीं पहुँच सकते
गुरु और धार्मिक-स्थल तक का नहीं कर सकते चयन

सब जगहों पर ख़बरों की मार है
हर चीज बन जाना चाहती है खबर
मालिक का प्रभाव और
मज़दूरों की मेहनत खबर बन जाने को बेचैन है
और हर कोई इस तरह से चल रहा है
जैसे वह कोई खबर हो

बाज़ार ने वश में कर ली हैं ख़बरें
सब होते जा रहे हैं खुद से बेखबर। 

२३ जनवरी २०१२

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