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अनुभूति में हर्ष कुमार की रचनाएँ-

कविताओं में-
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दंगे
फ़ासला- एक पीढ़ी का
मैं और मेरा भगवान
संध्या का सूर्य
सभ्यता की पहचान
समुद्र की लहरें

  संध्या का सूर्य

संध्या का सूर्य
दिखाई देता है
निस्तेज-शक्तिहीन
लगता है जैसे कोई छाया हो, बिंब हो।
अपने तेजस्वी स्वरूप का।

लगता नहीं वही सूर्य है
सभी को तपाने वाला
कोई साहस नहीं कर सकता था
जिसे देखने का।

अब वही अस्त होने चला है
क्षीण हो गया है
सभी देखते हैं उसकी ओर
जैसे हँस रहे हों
उसकी कमज़ोरी पर, असमर्थता पर

भूल जाते हैं-
उन्हें भी अस्त होना है
एक दिन उन्हें भी अस्त होना है

२४ मार्च २००८

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