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अनुभूति में कमलेश भट्ट कमल की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
उम्र आधी हो चली है
ऐसा लगता है

क्या हुआ
मुकद्दर उसके जैसा

अंजुमन में—
झुलसता देखकर
न इसकी थाह है
नदी
नसीबों पर नहीं चलते
ना उम्मीदी में
पेड़ कटे तो
वहाँ पर
समंदर
हज़ारों बार गिरना है
हमारे ख्वाब की दुनिया

दोहों में—
छे दोहे

हाइकु में—
आठ हाइकु
होली हाइकु

  नसीबों पर नहीं चलते

नसीबों पर नहीं चलते, नज़ीरों पर नहीं चलते
जो सचमुच में बड़े हैं वो, लकीरों पर नहीं चलते।

नियम, कानून जितने हैं, गरीबों के लिए ही हैं
नियम-कानून भी अक्सर, अमीरों पर नहीं चलते।

चलेंगे हिंदुओं पर भी, चलेंगे मुस्लिमों पर भी
जो मज़हब के शिकंजे हैं, कबीरों पर नहीं चलते।

समंदर ने बनाए हैं जज़ीरे अपने सीने पर
समंदर के नियम लेकिन जज़ीरों पर नहीं चलते।

कोई जादू हो दौलत का, कोई टोना हो शोहरत का
ये जादू और टोने भी फ़कीरों पर नहीं चलते।

१ मई २००५


 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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