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अनुभूति में प्रदीप कांत की रचनाएँ-

गीतों में-
क्या लिखते हो
काशी के हम पण्डे जी
ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
छेदों वाला पाल बुना रे

लिक्खें किसको अब चिट्ठी

अंजुमन में-
इतना क्यों बेकल
खुशी भले पैताने रखना
थोड़े अपने हिस्से
धूप खड़ी दरवाज़े

छंदमुक्त में-
आजकल
कितने ही राम
कैसे
चिड़िया और कविता
चिड़िया की पलकों में
दीवारें
बचपन
मित्र के जन्म दिन पर
यों ही
विश्वास
शब्द पक रहे हैं

  कैसे

कैसे समझूँ चाँद तुम्हे
महसूस होने लगती है
चकोर की निगाहों की थकन

कैसे समझूँ गुलाब तुम्हे
लहूलुहान होने लगती है
सोच अपनी ही

कैसे समझूँ उन्मुक्त पवन तुम्हे
पंख कट ही जाते हैं
मन के

कैसे समझूँ खामोशी तुम्हे
वक्त ठहर-सा जाना चाहेगा
तुम्हारी आँखों को पढ़ने की
कोशिश में

कैसे समझूँ शब्द तुम्हे
जो चुक ही जाते हैं
अक्सर

तुम सिर्फ तुम्हीं हो
मुश्किल ही नहीं
नामुमकिन लगता है
कोई उपयुक्त उपमा खोजना
तुम्हारे लिए

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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