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अनुभूति में प्रदीप कांत की रचनाएँ -

नयी रचनाओं में-
उठो जमूरे
काशी के हम पण्डे जी
क्या लिखते हो
ठसक वही की वही रही

मौन विदुर से

गीतों में-
ख्वाब वक्त ने जिनके कुतरे
छेदों वाला पाल बुना रे

लिक्खें किसको अब चिट्ठी

अंजुमन में-
इतना क्यों बेकल
खुशी भले पैताने रखना
थोड़े अपने हिस्से
धूप खड़ी दरवाज़े

अगली कारगुजारी में
अब करें भी हम दुआ क्या
घाटों के ना घर के साहब
बेबसों की बेबसी की
मुझको भी है भान अभी

छंदमुक्त में-
आजकल
कितने ही राम
कैसे
चिड़िया और कविता
चिड़िया की पलकों में
दीवारें
बचपन
मित्र के जन्म दिन पर
यों ही
विश्वास
शब्द पक रहे हैं

 

काशी के हम पंडे जी

जाने किसके डण्डे जी
मीठी बातों के पीछे
छुपे हुऐ हथकण्डे जी

अपनी आप बघारो जी
हमको नहीं उतारो जी
आप मौलवी काबा के तो
काशी के हम पण्डे जी

जिसकी भी अब खाएँगे
वही घराना गाएँगे
उस्तादों ने
बाँध दिये
हम को पक्के गण्डे जी

किसकी कुर्सी, बैठा कौन
जैसे सब हैं, हम भी मौन
बेईमानों की
मृत्यु पर
झुके हुऐ हम झण्डे जी

१ अक्टूबर २०२३ ३० जून २०१४

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