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अनुभूति में राज जैन की रचनाएँ -

अंजुमन में-
आदमी
आ के मिलिये
एक लम्हा ज़िन्दगी़
कल शहर था
तुमसे मिल कर
पहली बार
मुस्कुराने की चाहत

यह ख़लिश

संकलन में-
वर्षा मंगल - बिरहा
ज्योति पर्व - दिये जला देना
गांव में अलाव-ठिठुर ठिठुर कर
शुभकामनाएँ -आज झिझको
प्रेमगीत- मीठी उलझन

हाइकू में
नयी कामना

काव्यचर्चा में
सच सादगी और सरलता

  मुस्कुराने की चाहत

मुस्कुराने के दिन आ गए हैं मगर
मुस्कुराने की चाहत कहीं खो गई
हम जो हँसते हँसाते थे हर बात पर
खिलखिलाने की आदत कहीं खो गई

जिनके दीदार को हम तरसते रहे
एक नज़र देखकर आह भरते रहे
वो मिले तो मगर बेरूखी इस कदर
उनको पाने की चाहत कहीं खो गई

जिंदगी कर्ज है फ़र्ज के सिलसिले
सब लुटा के भी मिलते हैं शिकवे गिले
हमपे इलज़ामों का शोर था इस तरह
गुनगुनाने की हिम्मत कहीं खो गई

इनका अल्लाह है उनके भगवान हैं
आदमी तो हैं हम कितने इंसान हैं
आग और गोलियाँ ख़ून की होलियाँ
सारी पूजा इबादत कहीं खो गई

  

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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