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अनुभूति में राजेश्वरी पांढरीपांडे की
रचनाएँ -

:छंदमुक्त में-
अपनापन
अभिमानी
उतना ही
खो दिये
चम्मचभर मैं
नासमझ
ये रिश्ते

 

नासमझ

जो मन में उमड़ा
वहा

वहाँ तूफान था
शब्दों में ढला
तो उसे शैम्पेन का प्याला
समझ कर
सहजता से पी गये तुम!

जो दीप्त था
दावानल था
आँखों से उतरा-
तो सपना समझकर
जी गये तुम!

जो चीख रहा था
वह सत्य था- वेदना में बदला
जो चीख रहा था
वह सत्य था
जो चीख रहा था
वह सत्य था आसावरी समझ कर
गा गये तुम !

जो बीत गये
वे हम थे- वर्तमान हुये
भविष्य समझकर
रो दिये तुम !
यह कैसी जागृति है
जिस में
सो गये तुम!

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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