अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राकेश कौशिक की
रचनाएँ -

गीतों में-
अब मुझको आवाज़ न देना
आशा दीप
एक दीपक जल गया है
और बरस थोड़ा सा बादल
किसे मन की बात कह लूँ
कोहरा ये कब हटेगा
नव जीवन
बादलों तुम आ गए फिर
मन में छाया घोर अंधेरा
मेरा शहर बदल गया
मेरा वतन बदल गया
समय काटे नहीं कटता

स्वप्न में कल आई थी तुम

हम बंजारे
हम मछुआरे
है कठिन पथ

अंजुमन में—
इंसान बदल जाएगा
कब से खड़े हैं
कौन कहता है देश जागा है
गीत मेरे हैं तुम्हारे
जाने क्यों
जो इधर था
जो न झुकते थे
जो फ़ोर्स
तुम नज़र से दूर हो
तुमने मुझे पुकारा होगा
मिट्टी उड़ती है
मेरी धरती के लोगों
यदि आज है दुख
सब का सब कुछ
हर सहारा
हवाओं में

कविताओं में —
ऋतुचक्र
तुम न आए
भटके भटके हुए
महानगर
सूरज का इंतज़ार

संकलन में-
प्रेम गीत-आज उनसे
जग का मेला-मेरा भैया

 

ऋतु-चक्र

सूर्य किरणें हो गईं है प्रखर लू चलने लगी है,
पेड़-पौधे भी हैं कुम्हलाये,धरा जलने लगी है,
परबतों पर जो जमी थी बर्फ़ वो गलने लगी है,
आ भी जा कि बिन तेरे तन्हाई अब ख़लने लगी है।

टीन पर बरखा की बूँदों का मधुर संगीत है,
झूमते बन चीड़ के, पुरवाई गाती गीत है,
रंग ले आई लगन चातक की हो गई जीत है,
आ गई सावन की रुत, क्यों दूर मेरे मीत है।

झोंकों से हवा के झर गए हैं पीत सूखे पात,
प्रेतों से खड़े हैं ठूँठ बन पेड़ों के सुंदर गात,
इस मौसम में होते साथ तुम, थी और ही कुछ बात,
आ जाओ शरद की पूर्णिमा की आ रही है रात।

हिमाच्छादित हैं परबत, पेड़, बन, मैदान, छप्पर सब,
बदन में झुरझुरी उठती है चलता है पवन जब-जब,
कफ़न ओढ़ा है फूलों ने, सिकुड़ कर रह गए दिन अब,
हुई आरंभ रुत हेमंत की, तुम आ रहे हो कब।

नींद टूटी पेड़-पौधों की, शगूफ़े खिल गए,
घाव धरती को मिले पतझड़ से सारे सिल गए,
झील में महके कँवल बरबस लुभा ले दिल गए,
आ मेरे जीवन वसंत आ देख बिछड़े मिल गए।

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter