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अनुभूति में डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -

माहिया में-
धूप छाँह सा मन

छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम

क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान

संकलन में-
वसंती हवा-फागुनी आँगन
घरौंदा
धूप के पाँव-अमलतासी धूप

नववर्ष अभिनंदन-नव स्वर देने को

 

माँ तुझे प्रणाम

मृदुल थपकियाँ देकर सुलाती
मधुर स्वर में लोरी गाती
हाथों के झूलों पर जो
दिन रात शिशु को झुलाती
वही नारी वही नारी हाँ
वही नारी तो माँ कहलाती
संस्कारों की खनि से निकाल
जो शिशु को रत्न बनाती हाँ
वही नारी वही नारी हाँ
वही नारी तो माँ कहलाती
धन्य है माँ के प्रयास
बच्चों को देती अहसास

मधुसरिता-सी खुद बह कर
बच्चों में प्रेम रस बरसाती
वही नारी वही नारी हाँ
वही नारी तो माँ कहलाती

आओ आज मातृ दिवस पर
हाथ जोड़ कर अंतरमन से
इस पुनीत अवसर पर
हम उस माँ को शत शत
प्रणाम करें!

मन की वीणा के तार छेड़
उसकी महिमा का
हम गुणगान करें।

09 मई 2005

 

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