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अनुभूति में सतीश जायसवाल की रचनाएँ-

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अमरूद बनाम बिही
कार्तिक का पूर्वाभास
धूप की नदी
सर्दियों की धूप
स्वेटर बुनती हुई वह

छंदमुक्त में-
उसके पेड़ पहाड़
पंछियों का चतुर्मास
प्रार्थना
रसमडा
सपने में उजाला

 

कार्तिक का पूर्वाभास

दोपहर तीन के बाद
दीवार-दरवाज़े छोड़
बाहर निकल आती है
पीली रंगत वाली लड़की,

सड़क भर छोड़ती छाया
सरकती जाती है
कार्तिक की मुलायम धूप
गिरजे की तरफ
हवा में तैर रही है
दूर तक फ़ैल रही है
लोहे वाले घंटे की आवाज़ ,

पेड-पत्तियाँ कुचलती
लम्बे-लम्बे दाग भरती
घर की तरफ लौट रही है
लम्बी स्कूली लड़की,

तार पर अटक रही है
बिजली का खम्भा फलांगती धूप ,

नीचे खड़ी है
वही लम्बी,स्कूली लड़की
उसकी उम्र बढ़ रही है
अब घर में नहीं समाती
आ वह, ना उसकी उम्र,

नाले के पीछे वाले
घास के मैदान में
पसरी है धूप
घर की तरफ लौटती
लम्बी स्कूली लड़की
ठिठकती और आहट लेती है ,

सामने वाले चौराहे से जैसे
किसी ने पुकारा
उसे, उसके नाम से
या बहुत नज़दीक से
उस पर धर दिया हाथ
और दुबक गया
बगल वाली गली में ,

ऐसे में
घर लौटते हुए मवेशियों की घंटियाँ ...

४ नवंबर २०१३

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