अनुभूति में
सत्य
प्रकाश बाजपेयी की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
अंतर्मन
अनंत चतुर्दशी
आज माँ आई थी
घर
देखा देखी
प्रतीक्षा
भूख
|
|
आज माँ आई थी
पिछले कई दिनों से
मेहमानों का ताँता सा लगा था
मेरे एकांतवासी कमरे में
सोने को जगह तक न बची
और पूस की रात में, ओढ़ने को भी कम ही था
धीरे-धीरे सब चले गये
मिल गया मुझे मेरा कमरा,
वही अव्यवस्थित पिछले चार सालों से ।
मेज पर किताबों का ढेर,
और कुर्सियों पर कपड़ों का
छिपी हुई ऐश ट्रे भी वापस
कागजों के सादे टुकड़ों पर
मेरी तैयारियाँ, तथाकथित योजनाएँ ।
अब कोई नही छू सकता
पुराने फोटो के अलबम,
लाल गुलाब के फूल
कुछ ताज़े, कुछ सूखे
बिल्कुल अतीत की तरह
दिवालों पे स्टीकर,
कम्प्यूटर की मेज साफ सुथरी
सब सिर्फ मेरी ही अभिप्राय थे ।
इस सदी की भागमभाग में
यही सब साथ था, हमेशा
ज़ाहिर है, हस्तक्षेप पसंद नहीं करूँगा
घर के सारे लोग जा चुके थे,
ऐसे में अपने कमरे को थोड़ा ठीक ठाक करता
और जाने के बाद
फिर से मशगूल हो जाता था ।
पर आज
माँ आई थी ।
१४ मई २०१२
|