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अनुभूति में शैल अग्रवाल की रचनाएँ- 

छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी

हाइकू में
दोस्त, योंही, आज फिर, जीवन, आँसू

संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध में
शुभकामनाएँ–पिचकारी यह
होली – होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास– आई पगली
                 कटघरे में
                - मुस्कान
                - ममता

पिता की तस्वीर– बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व– तमसो मा ज्योतिर्गमय
                - दिया और बाती
                - धूमिल रेखा
जग का मेला– चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ : दो क्षणिकाएँ

 

ऐसे ही

आकांक्षा के फूलों को
गुलदस्ते में सजाकर
लोगों ने पूछा
ये फूल मुरझा क्यों गए
क्या इन्हें
राग और द्वेष के
कीड़े खा गए
गुलदस्ता अब कोई
सोच की मिट्टी तो नहीं
जो फूलों की जरूरत समझे
खुदको वैसे ही ढाल ले
और माँ की कोख–सा ही
पोषक बन जाए ––
गुलदस्ता तो बस गुलदस्ता है
ये फूल तो यों ही मुरझाते हैं
कभी इन्हें तारीफ का
पानी गला देता है
तो कभी इनसे भी ज्यादा
सुन्दर फूल दिख जाते हैं
वैसे भी गुलदस्ते में रक्खे
फूल तो अक्सर यों ही
बदल दिए जाते हैं।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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