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चाहत के चिराग

तुम जो खामोश रहोगे मेरे अफ़साने आ के
तुम्हारी रूह से बातें करेंगे जी भर के
और जो अँधेरे तुम पे ढलने के लिए छाए थे
मेरी चाहत के चिराग़ों से छिटक जाएँगे।

तुम जो तन्हा कभी बैठे होंगे
न गम़गी़न न खुश बस यों ही
मेरी यादों के तबस्सुम आ के
तेरे लबों के किनारों से लिपट जाएँगे।

कुछ यों हमारे प्यार का किस्सा होगा
मेरी चाहत तुम्हें मायूस न होने देगी
और जो काँटें तेरी राह में बिखरे होंगे
मेरे कदमों की पनाहों में सिमट आएँगे।

जो अँधेरे तुम पे ढलने के लिए छाए थे
मेरी चाहत के चिराग़ों से छिटक जाएँगे।

24 अप्रैल 2005

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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