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पारस

मैं तो पारस हूँ , मेरी जात है सोना करना
अपनेपन की उम्मीद दोस्त मुझसे क्या करना!

हर मोड़ पे हो जिसके बिछुड़ जाने का डर
ऐसे राही के संग यारों सफ़र ना करना।

गर फूल खिलाते हो दिल की मिट्टी में
एक आँख में सूरज़, एक में शबनम रखना।

मैंने इन होठों से जिनको छुआ था जाते समय
उसने छोड़ा है उन जख़्मों पे मरहम रखना।

वो मेरे आँख का मोती था या हाथों का नगीना
जो गुम गया अब उस पे बहस क्या करना!

मुझको खुदा दुनिया में गर फिर लाएगा
दिल मेरा बड़ा, उमर मेरी ज़रा कम रखना।

मैं तो पारस हूँ, मेरी जात है सोना करना
अपनेपन की उम्मीद दोस्त मुझसे क्या करना!

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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