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अनुभूति में शशि पाधा की रचनाएँ-

नये गीतों में-
खिड़की से झाँके

दीवानों की बस्ती में
मन मेरा आज कबीरा सा
मैंने भी बनवाया घर
स्वागत ओ ऋतुराज

माहिया में-
तेरह माहिये

गीतों में-
आश्वासन
क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन
कैसे बीनूँ, कहाँ सहेजूँ
चलूँ अनंत की ओर
पाती
बस तेरे लिए

मन की बात
मन रे कोई गीत गा
मैली हो गई धूप

मौन का सागर
लौट आया मधुमास

संधिकाल

संकलनों में-
फूले कदंब- फूल कदंब

होली है- कैसे खेलें आज होली
नववर्ष अभिनंदन- नव वर्ष आया है द्वार
वसंती हवा- वसंतागमन

नवगीत की पाठशाला में-
कैसे बीनूँ
गर्मी के दिन

मन की बात

 

मैंने भी बनवाया घर

धरती अम्बर मोल ना माँगें
सागर ने पूछा ना दाम
नदिया पर्वत लिखें ना कागज
हवा ना पूछे क्या है नाम
अपने मन की इस नगरी में
मैंने भी बनवाया घर

इस गाँव में न पटवारी
ना साहु, ना सेठ कोई
ना कोई माँगे हिस्सेदारी
धन का दाँव पलेच नहीं
तिनके माटी घोल यहाँ की
मैंने भी बनवाया घर

चहुँ दिशा दीवारें होंगी
नील गगन की छत खुली
सागर का तट नीँव सरीखा
धूप झरेगी धुली-धुली
शंख सीपियाँ जोड़ के मैंने
लहरों पे बनवाया घर

कोई ना पूछे अता–पता क्या
किरणें सीधी राह चालें
चंदा सूरज लालटेन से
चौक–चौराहे आन जलें
तारे-जुगनू टाँग डगर पे
मैंने भी बनवाया घर

७ अप्रैल २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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