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अनुभूति में भारत भूषण की रचनाएँ-

गीतों में-
अब खोजनी है
आज पहली बात
चक्की पर गेहूँ
जिस दिन बिछड़ गया
जिस पल तेरी याद सताए
जैसे पूजा में आँख भरे
तू मन अनमना न कर
बनफूल
मनवंशी
मेरी नींद चुराने वाले
मेरे मन-मिरगा
ये असंगति जिंदगी के द्वार
ये उर सागर के सीप
राम की जल समाधि
लो एक बजा

सौ सौ जनम प्रतीक्षा
हर ओर कलियुग


 

 

 चक्की पर गेहूँ

चक्की पर गेहूँ
लिए खड़ा मै सोच रहा उखड़ा उखड़ा
क्यों दो पाटों वाली साखी बाबा कबीर को रुला गई ।

लेखनी मिली थी
गीतव्रता प्रार्थना- पत्र लिखते बीती
जर्जर उदासियों के कपड़े थक गई हँसी सीती- सीती
हर चाह देर में सोकर भी दिन से पहले
कुलमुला गई।

कन्धों पर चढ़
अगली पीढ़ी ज़िद करती है गुब्बारों की
यत्नों से कई गुनी ऊँची डाली है लाल अनारों की
प्रत्येक किरण पल भर उजला काले
कम्बल में सुला गई।

गीतों की
जन्म-कुंडली में संभावित थी ये अनहोनी
मोमिया मूर्ति को पैदल ही मरुथल की दोपहरी ढोनी
खंडित भी जाना पड़ा वहाँ जिन्दगी जहाँ
भी बुला गई।

१९ दिसंबर २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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