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अनुभूति में जानकीवल्लभ शास्त्री की रचनाएँ—

कहानी
कुपथ रथ दौड़ाता जो
ग़म न हो पास
बौराए बादल?

माझी उसको मझधार न कह
मौज
स्याह-सफ़ेद

 

कुपथ रथ दौड़ाता जो

कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
पथ निर्देशक वह है,
लाज लजाती जिसकी कृति से
धृति उपदेश वह है,

मूर्त दंभ गढ़ने उठता है
शील विनय परिभाषा,
मृत्यू रक्तमुख से देता
जन को जीवन की आशा,

जनता धरती पर बैठी है
नभ में मंच खड़ा है,
जो जितना है दूर मही से
उतना वही बड़ा है।

२४ अक्तूबर २००७

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