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अनुभूति में जानकीवल्लभ शास्त्री की रचनाएँ—

कहानी
कुपथ रथ दौड़ाता जो
ग़म न हो पास
बौराए बादल?

माझी उसको मझधार न कह
मौज
स्याह-सफ़ेद

 

माझी उसको मझधार न कह

रुक गयी नाव
जिस ठौर स्वयं, माझी,
उसको मझधार न कह !

कायर जो बैठे आह भरे
तूफानों की परवाह करे
हाँ, तट तक
जो पहुँचा न सका,
चाहे तू उसको ज्वार न कह !

कोई तम को कह भ्रम, सपना
ढूँढे, आलोक-लोक अपना,
तव सिन्धु पार
जाने वाले को,
निष्ठुर, तू बेकार न कह !

११ अप्रैल २०११

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