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अनुभूति में अजय तिवारी की रचनाएँ

गीतों में—
कैसे समझाएँ
खालीपन
जीवन - संध्या
धूप का टुकड़ा
सच्चाई
क्षण भर

 

सच्चाई

एक समय था
सच्चाई तुम
अंतस में बसती थीं।

बदल गई हो तुम कितना
कहाँ जानती हो,
मेरे दिल को घर अपना
अब कहाँ मानती हो?

एक समय था
नस-नस में तुम
गंगा-सी बहती थीं।

मन-मंदिर खंडहर अब
सूना लगता है,
ज़र्रा-ज़र्रा ईंटा-पत्थर
रूना लगता है।

एक समय था
मन में मेरे तुम
देवी-सी सजती थीं।

छद्म भेष में चोर-लुटेरे
अब खुले घूमते हैं,
गीता छूकर लोग सफ़ेद
झूठ बोलते हैं।

एक समय था
जब निर्भय तुम
झूठ न सहती थीं।

१४ जुलाई २०१४

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