अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अमृत खरे की रचनाएँ-

गीतों में-
अभिसार गा रहा हूँ
गुजरती रही जिंदगी
जीवन की भूल भुलैया
जीवन एक कहानी है
देह हुई मधुशाला
फिर याद आने लगेंगे
फिर वही नाटक

 

फिर वही नाटक

फिर वही नाटक, वही अभिनय,
वही संवाद, सजधज,
अब चकित करता नहीं है दृश्‍य कोई

मंच पर जो घट रहा
झूठा दिखावा है,
सत्‍य तो नेपथ्‍य में है;
यह प्रदर्शन तो
कथानक की
चतुर अभिव्‍यक्ति के
परिप्रेक्ष्‍य में है

फिर वही भाषण, वही नारे,
वही अन्‍दाद, वादे,
अब भ्रमित करता नहीं है दृश्‍य कोई

आँसुओं सी झर रही
जो दीखती है,
धारियाँ ग्लिसरीन की हैं
और जो आहें हैं,
मुख पर वेदनाएँ,
वे सतत अभ्‍यास से
निर्मित हुई हैं

फिर नियोजित द्वंद्व, फिर शह-मात,
घात-प्रतिघात, चीखें,
अब व्‍यथित करता नहीं है दृश्‍य कोई

१३ जून २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter