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अनुभूति में आनंद शर्मा की रचनाएँ—

नए गीतों में-
कुछ तो होना ही था

तम का पीना आसान नहीं होता
यायावर जैसा जीवन जीते हैं
यह अँधेरा तो नया बिलकुल नया है
यह नगर व्यापारियों का है

गीतों में-
गंगाजल वाले कलश
मेरे मन के ताल में

  कुछ तो होना ही था

कुछ तो होना ही था आखिर मेरे सपनों का
या तो ये सच ही हो जाते या फिर टूट गए

टूटे सम्बन्धों को चाहा लेकिन नहीं जुड़े
वन को जाते राम कि जैसे वापस नहीं मुड़े
सुन रे मन इसमें कोई अनहोनी बात नहीं
पंखहीन थे पंछी इच्छाओं के नहीं उड़े

कुछ तो होना ही था आखिर मेरे अपनों का
या तो ये खुश ही हो जाते या फिर रूठ गए

आँखों से शबनम जन्मी पर मौसम वही रहा
सूरज जैसा तपा मगर तम का आरोप सहा
वैसे मन के सागर में दिन रात ज्वार उठते
पर पीड़ा का शिलाखंड तो तिल भर नहीं बहा

कुछ तो होना ही था आखिर कल्पित रत्नों का
या तो ये अंजलि में आते या फिर छूट गए

इस युग में भी संवेदन से रीत नहीं पाया
किसी पराजित प्रतियोगी को जीत नहीं पाया
आशा तो कर में जयमाल लिये थी पर मैंने
उत्सव में सम्मोहन वाला गीत नहीं गाया

कुछ तो होना ही था आखिर भावुक वचनों का
दृग से बहते या तो फिर अधरों से फूट गए

४ मई २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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