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अनुभूति में अनूप अशेष की कविताएँ-

नए गीत-
आवाजों के खो जाने का दुख कितना
इतने बरसों बाद

एक चिड़िया आई
दस देहों की गंध
नदी बाढ़ के
परछाईं मछली की
बानी माँग रहे
सपने का झुनझुना
सीढ़ी लगे उतरने
हरी घास पीली दूबों पर

गीतों में-
दिन चार ये रहें
दुख पिता की तरह
पत्तियों जैसा झरा
मकड़ी के जाले

संकलन में-
वसंती हवा – देह का संगीत
धूप के पाँव– कोई चिड़िया नहीं बोलती

दोहों में-
फागुनी दोहे

 

 

 

इतने बरसों बाद

इतने बरसों बाद भले से
लगते गीले घर।।

गौरैया के पंख भीग कर
निकले पानी से,
कितने गए अषाढ़
देह के
छप्पर-छानी से।
बिटिया के मन में उगते
चिड़ियों के पीले-पर।।

अबके हरे-बाँस फूटें
आँगन शहनाई में,
कितने छूँछे
हर बसंत
बीते परछाई में।

अंकुराई है धान खेत के
सूखे-डीले पर।।

लाज लगे कोई देखे तो
फूटे पीकों-सी,
दूध-भरी
फूटी दोहनी के
खुलते छींकों-सी।
माँ की आँखों में झाँके-दिन
बंधन ढीले कर।।

२५ फ़रवरी २००८

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