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अनुभूति में आशाराम त्रिपाठी की रचनाएँ—

गीतों में—
उजियारा कुछ मंद हो गया
ऐसा उपवन हो
कविता से
मुरझाई कली
हे बादल

अंजुमन में—
दरपन ने कई बार कहा है
सहसा चाँद उतर आता है

संकलन में—
लहर का कहर– सुनामी लहरें

 

 

कविता से

शब्दों का
घूँघट लंबा तह मोटी घने विचार की
कैसे जी भर झलक निहारूँ
भाव भरे शृंगार की

सरस हृदय के
निर्झर सी कविता जब झर–झर बहती है
लोक लालसा अवगाहन करने को आतुर रहती है
ऊपर से भू पर तो उतरो खाली पद पटरानी का
सदा नहाओ दूधों पूतों फलो यही वर बानी का
सबकी होकर रहो बिसारो बातें
व्योम विहार की

कविते! तुम्हीं
बताओ क्या कविता तुक तान मिलाना है
मगजमार कसरत करना भीतर की भूख भुलाना है
कविता युगों युगों से भू पर बहती जीवन धारा है
कविता युग की युग कविता का यही लोकप्रिय नारा है
करो उजागर जग में गाथा
आँसू के परिवार की

बानी के कुछ
बंदों ने छंदों को छल कर छीन लिया
नये प्रयोगों की धुन में रस अवयव हीन मलीन किया
पंडे ज्यों झंडे गाड़े कवि पुंगव ने की मनमानी
ऐसे शब्द सूरमाओं की मत सहन करो अब नादानी
रच बस जाओ साँस साँस में
मेहनत के करतार की

अरे! आह
की बेटी जब से ब्याही गई मजाकी से
गई सेंत में साख सनातन आँख लड़ गई साकी से
कविते! तेरा नाम रूप लेकर बस धंधा होता है
देख दशा दयनीय देश का आकुल अंतस रोता है
असर मसखरे का मंचों पर
बसर ठहाकेदार की

१ जून २००६

 

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