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अनुभूति में भारतेंदु मिश्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अंधा दर्पन
गीत होंगे

मौत का कुआँ
रामधनी की माई

दोहों में-
सरिता के कूल

गीतों में-
कितनी बार
गयाप्रसाद
बाजार घर में
बाजीगर मौसम
बाँसुरी की देह दरकी
देखता हूँ इस शहर को
नवगीत के अक्षर
मदारी की लड़की
रोज नया चेहरा
वाल्मीकि व्याकुल है
समय काटना है

 

हमको सब सहना है

तट हैं हम धारा के
हमको सब सहना है
इस गहरी नदिया के
संग संग बहना है।

मरघट है -मेले हैं
सुख दुःख है हलचल है
मंदिर है मस्जिद है
कीकर है पीपल है
ये संगी साथी हैं
इनका क्या कहना है?

जो कागज पर चढ़कर
धारा में बहते हैं
मछुआरे उनको ही
प्रगतिशील कहते हैं
हमने तो सन्नाटे का
चीवर पहना है।

सपने हैं अस्थि शेष
लाशें हैं आँखों में
फटता है मन हर दिन
हादसों धमाकों में
कटती है रजत देह
फिर भी चुप रहना है। 

४ नवंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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