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अनुभूति में दिनेश सिंह की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अकेला रह गया
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नाव का दर्द
प्रश्न यह है
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मौसम का आखिरी शिकार

गीतों में-
आ गए पंछी
गीत की संवेदना
चलती रहती साँस
दिन घटेंगे
दिन की चिड़िया
दुख के नए तरीके
दुख से सुख का रिश्ता
नए नमूने
फिर कली की ओर
लो वही हुआ
साँझ ढले

हम देहरी दरवाजे

संकलन में-
फूले फूल कदंब- फिर कदंब फूले


 

 

दुख के नए तरीके!

सिर पर
सुख के बादल छाए
दुख नए तरीके से आए

घर है, रोटी है, कपडे हैं
आगे के भी कुछ लफड़े हैं
नीचे की बौनी पीढी के,
सपनों के नपने तगड़े हैं

अनुशासन का
पिंजरा टूटा
चिडिया ने पखने फैलाए
दुख नए तरीके से आए

जांगर-जमीन के बीच फॅसे
कुछ बड़ी नाप वाले जूते
हम सब चलते हैं सडकों पर
उनके तलुओं के बलबूते

इस गली
उस गली फिरते हैं
जूतों की नोकें चमकाए
दुख नए तरीके से आए

सुविधाओं की अंगनाई में,
मन कितने ऊबे-ऊबे हैं
तरूणाई के ज्वालामुख,
लावे बीच हलक तक डूबे हैं

यह समय
आग का दरिया है,
हम उसके मांझी कहलाए
दुख नए तरीके से आए!

१४ फरवरी २०११

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