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कौन सुनता है तुम्हारी बात अब
खुद से प्यार
मन मेरा यह चाहे छू लूँ

मेरा जीवन बंजारा है
यादें जब भी आती हैं
ये शरीर है एक सराय

  ये शरीर है एक सराय

ये शरीर है एक सराय
जीवन जिसमें ठहरा है

पंचतत्व का है ये ढांचा
अहम- स्वार्थ का इसमें डेरा
काम-क्रोध और लोभ- मोह ने
मिल- जुल कर है इसको घेरा

मान और अपमान का इस पर
हरदम रहता पहरा है
ये शरीर है एक सराय
जीवन जिसमें ठहरा है

संबंधों की ज़ंजीरों में
ये हरदम जकड़ा रहता
दर्द बहुत सीने में लेकिन
कभी किसी से ये न कहता

ठेस लगी जब भी अपनों से
घाव बना इक गहरा है
ये शरीर है एक सराय
जीवन जिसमें ठहरा है

१६ जुलाई २००६

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