| अनुभूति में
                  
					गुलाब सिंह 
					 की 
                  रचनाएँ— गीतों में—अपने ही साए
 गीतों का होना
 दिन
 पेड़ और छाया
 फूल पर बैठा हुआ भँवरा
 शहरों से 
					गाँव गए
 हतप्रभ हैं शब्द
 
   |  | 
					फूल पर बैठा हुआ 
					भँवरा 
					फूल पर बैठा हुआ भँवरा
 शाख पर गाती हुई चिड़िया
 घास पर बैठी हुई तितली
 और तितली देखती गुड़िया
 हमें 
					कितने
 दिन हुए देखे !
 
 घाट के
 नीचे झुके दो पेड़
 धार पर ठहरी हुई दो आँख
 सतह से उठता हुआ बादल
 और रह-रह फड़कती दो पाँख
 हमें कितने
 दिन हुए देखे !
 
 बाँह-सी
 फैली हुई राहें
 गोद-सा वह धूल का संसार
 धूल पर उभरे हुए दो पाँव
 और उन पर बिछा हरसिंगार
 हमें कितने
 दिन हुए देखे !
 
 
 घुप अँधेरे
 में दिए की लौ
 दिए जल पर भी जलाते लोग
 रोशनी के साथ बहती नदी
 और उससे नाव का संयोग
 हमें कितने
 दिन हुए देखे !
 
					३१ अक्तूबर २०११ |