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अनुभूति में कुमार रवींद्र` की रचनाएं

नए गीत
अपराधी देव हुए
इसी गली के आखिर में
और दिन भर...
खोज खोज हारे हम
पीपल का पात हिला

गीतों में
गीत तुम्हारा
ज़रा सुनो तो
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

संकलन में-
बरगद- बरगद ठूँठ हुआ
खिलते हुए पलाश- टेसू के फूलों वाले दिन
नयनन में नंदलाल- टेर रही कनुप्रिया
नयनन में नंदलाल- वंशी की धुन
नया साल- वर्ष की पहली सुबह
नया साल- तरीका नव वर्ष मनाने का

होली है- दिन वसंत के

  अपराधी देव हुए

अपराधी देव हुए
ऐसे में क्या करें मंदिर की घंटियाँ

उनको तो बजना है
बजती हैं
कई बार
आपा भी तजतीं हैं

धूप भरी भोर-हुए
कैसे फिर धीर धरें मंदिर की घंटियाँ

भक्तों की श्रद्धा वे
झेल रहीं
आँगन में अप्सराएँ
खेल रहीं
उनके सँग राजा भी
देख-देख उन्हें तरें मंदिर की घंटियाँ

एक नहीं
कई लोग भूखे हैं
आँखों के कोये तक
रुखे हैं

दर्द सभी के इतने
किस-किस की पीर हरें मंदिर की घंटियाँ।

१ जून २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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