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अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएं

नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर

गीतों में
अपराधी देव हुए

इसी गली के आखिर में
और दिन भर...

खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा

ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

संकलन में-
बरगद- बरगद ठूँठ हुआ
खिलते हुए पलाश- टेसू के फूलों वाले दिन
नयनन में नंदलाल- टेर रही कनुप्रिया
नयनन में नंदलाल- वंशी की धुन
नया साल- वर्ष की पहली सुबह
नया साल- तरीका नव वर्ष मनाने का

होली है- दिन वसंत के

  और... दिन भर

और...
वे बैठी रहीं दिन-भर
आँसुओं के द्वीप ही पर

देह का इतिहास उनका
है अधूरा
स्वप्न उनकी कोख का
कोई न पूरा

कभी
वे भी थीं बनातीं
नदी-तट पर साँप के घर

भटकने को मिला उनको
एक जंगल
घर मिला जिसकी नहीं थी
कोई साँकल

सोनचिड़िया
वे अनूठीं
कटे जिसके हैं सभी पर

आँच उनके बदन की
उनको जलाती
कोई लिखता नहीं उनको
नेह-पाती
रात आए
परी बनतीं
नाचती हैं ज़हर पीकर।

१ जून २००९

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