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अनुभूति में डॉ राधेश्याम शुक्ल की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अम्मा धरें रोज सगुनौटी

आँगन की तुलसी
गँवई साँझ
जाने किस घाट लगे
पिता गाँव में
पुरवाई

 

गीतों में-
कुछ कहीं हो जाए
मेरा शहर

संकलन में-
श्वेतवर्ण कोमल बादल

दोहों में-
रेत नहाई नदी

 

कुछ कहीं हो जाए

कुछ कहीं हो जाए,
यह संभावनाओं का शहर है।

रात के आग़ोश में
सो जाए सूरज, बहुत मुमकिन,
एक प्याली चाय में
खो जाए सूरज बहुत मुमकिन

कुछ न पूछो
यह नई परिकल्पनाओं का शहर है।

लाख बचकर आप निकलें
चोट लगकर ही रहेगी,
और इस पर आप को ही
भीड़ अपराधी कहेगी।

हों नहीं हैरान
यह सनकी हवाओं का शहर है।

भूलकर भी दो गुने दो चार
अब होता नहीं है
सत्य को कितना खरा
आधार अब होता नहीं है

झूठ के हैं पाँव,
यह प्रेतात्माओं का शहर है।

24 अप्रैल 2007

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