अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ राधेश्याम शुक्ल की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अम्मा धरें रोज सगुनौटी

आँगन की तुलसी
गँवई साँझ
जाने किस घाट लगे
पिता गाँव में
पुरवाई

 

गीतों में-
कुछ कहीं हो जाए
मेरा शहर

संकलन में-
श्वेतवर्ण कोमल बादल

दोहों में-
रेत नहाई नदी

 

मेरा शहर

एक अंधी भीड़ का
भूगोल है मेरा शहर,
आँधियाँ विज्ञापनी इतिहास रचती हैं।

आसमाँ सर पर उठाए
घूमती हैं-
दर-ब-दर बौनी महत्वाकांक्षाएँ,
वक्त की काली सियाही
छापती है
कीर्तिमानों की समीकरणी कथाएँ

अस्तगामी सूर्य की
आहत प्रभाएँ बेतुकी
जुगनुओं की भीड़ अपने पास रचती हैं।

हर गली-घर से
अजूबी बात करतीं
ज़िंदगी के पक्ष में प्रेतात्माएँ,
सरफिरे माहौल को

गरमा रहै हैं
जंगली राजे तथा आदिम प्रजाएँ।

ज़हन में उतरे हुए
आतंक की ख़ामोशियाँ
राजपथ पर खुशनुमा अहसास रचती है।

24 अप्रैल 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter