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अनुभूति में राजा अवस्थी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ

पहले ही लील लिया

गीतों में-
आस के घर

कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के बादल
छाँव की नदी
झेल रहे है

मन बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की सुकुमार काया

 

हृदय की सुकुमार काया

हृदय की सुकमार काया के लिए विरचित
इस सदी की ओर से बस घाव हैं

समय के आयुध निगोउे़
हुए आक्रामक हमीं पर
दहकते नासूर छोउे़
सृजन की शीतल जमीं पर
वर्ण कंपितशब्‍द विचलितअर्थ बदले से
नई पीढ़ी को कई भटकाव हैं

स्‍वार्थ ने कारण तलासे
नेह बंधन मुक्‍ति के
हृदय पर थोपे दिलासे
तर्क पोषित युक्‍ति के
चंद सिक्‍के चंद सुविधाएँ जुटाने के लिए
ओढ़ बैठे रक्‍त से अलगाव हैं

३ सितंबर २०१२

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