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अनुभूति में राजा अवस्थी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ

पहले ही लील लिया

गीतों में-
आस के घर

कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के बादल
छाँव की नदी
झेल रहे है

मन बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की सुकुमार काया

 

सपनों का संसार

सपनों का संसार
खोजने अब सुधियों के देश चलेंगे
महानगर में सपने अपने धू-घू करते रोज जलेंगे

शापों का
संत्रास झेलते पूरा का पूरा युग बीता
शुभाशीष का एक कटोरा अब तक है रीता का रीता
पीड़ाओं के शिलाखण्‍ड ये जाने किस
युग में पिघलेंगे

यहाँ रहे तो
कट जाएगी सुधियों की यह डोर एक दिन
खो देंगे पतंग हम अपनी नहीं दिखेगा छोर एक दिन
नदी नहीं रेत ही रेत है तेज धूप है
पाँव जलेंगे

खेतों की मेड़ों पर
दहके- होंगे स्‍वागत में पलास भी
छाँव लिए द्वारे पर अपने बैठा होगा अमलतास भी
धूल धुँए धूप के नगाड़े हमें देखते
हाथ मलेंगे

हाथों का दम
ले आएगा पर्वत से झरना निकाल कर
सीख लिया है जीना हमनें संत्रासों को भी उछालकर
मुस्‍कानों के झोंके होंगे जिन गलियों से
हम निकलेंगे

अपने मन के
महानगर में तुलसी के चौरे हरियाए
सुबह-शाम आरती हुई है सबने घी के दीप जलाए
मानदण्‍ड शुभ सुन्‍दरता के मेरी बस्‍ती
से निकलेंगे

३ सितंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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