अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रोहित रूसिया की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
एक पंछी ढूँढता है
क्या कहें क्या ना कहें
जब भी लिखना जो भी लिखना
प्रेम में भीगे हुए कुछ फूल

सिकुड़ गई क्यों

गीतों में-
अब नहीं आतीं
एक तिनके का सहारा
नदी की धार सी संवेदनाएँ
बाहर आलीशान
मेरा छूट गया गाँव
है कौन जो भीतर रहता है

 

है कौन जो भीतर रहता है

है कौन जो भीतर रहता है
है कौन जो मुझमे नाज़िर है

जीवन के
जितने पहलू हैं
तुम सब पर एक नज़र डालो
इच्छा हो जो जो करने की
रोको मत उसको कर डालो
तुम चाहोगे
तो हार मिले
चाहो तो
मंजिल हाज़िर है

है कौन जो भीतर रहता है
है कौन जो मुझमे नाज़िर है

ये तन तो
जैसे माटी है
जैसे ढालो ढल जायेगा
पर मन की तेज उडानों को
काबू कैसे कर पायेगा ?
ये तन तो
आखिर अपना है
पर मन
क्यों यहाँ मुहाज़िर है

है कौन जो भीतर रहता है
है कौन जो मुझमे नाज़िर है

२९ अक्तूबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter