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अनुभूति में रोहित रूसिया की रचनाएँ-

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एक पंछी ढूँढता है
क्या कहें क्या ना कहें
जब भी लिखना जो भी लिखना
प्रेम में भीगे हुए कुछ फूल

सिकुड़ गई क्यों

गीतों में-
अब नहीं आतीं
एक तिनके का सहारा
नदी की धार सी संवेदनाएँ
बाहर आलीशान
मेरा छूट गया गाँव
है कौन जो भीतर रहता है

 

मेरा छूट गया गाँव

सुविधा के मोह में बहक गए पाँव
मेरा, छूट गया गाँव

गोबर से लिपा पुता
रहता था आँगन
खुशियाँ ही खुशियाँ
तब,
लाता था सावन

जीवन अब अस्त-व्यस्त
सर पे नही छाँव

शहर सारा बेगाना,
सर पे नही साया
सुख में,
जो साथ रहा,
दुख मे ना आया

नहीं बचा ठौर कोई
नहीं कोई ठाँव

रोजी के लाले हैं,
पाँवों मे छाले
सुलझाए,
सुलझे ना,
उलझन के जाले

जीवन मे लगने लगे
रोज़ नए दाँव

२९ अक्तूबर २०१२

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