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नयी रचनाओं में-
पता करे कोई
फुर्सत ही फुर्सत है
मत पूछो
यारी रखना
सहूर की बातें

अंजुमन में-
आज मेरी बात का उत्तर
दर बदर
फलक पे दूर
संगवारी को

मुक्तक में-
अपनी पलकें नहीं भिगोते

  अपनी पलकें नहीं भिगोते

अपनी पलकें नहीं भिगोते हैं।
चैन से झोंपड़ी में सोते हैं।
ईंट कहना नहीं इन्हें हरगिज,
चाँद तारो को सर पे ढोते हैं।

खुद मिट गयी हिना तो ज़माने के वास्ते,
आया न कोई उसको बचाने के वास्ते,
पानी मिला मिला के सभी पीसते रहे,
अपनी हथेलियों पे रचाने के वास्ते।

इस जमीं आसमान से करना।
चाहे सारे जहान से करना।
मेरे जैसा वो सिर्फ दिखता है,
दोस्ती उससे ध्यान से करना।

अबकी बारी अषाढ़ टूटे हैं
मुश्किलों के पहाड़ टूटे हैं
मौत मंदिरों में घुस रही देखो
जिन्दगी के किवाड़ टूटे हैं।

१३ जनवरी २०१४

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