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नयी रचनाओं में-
पता करे कोई
फुर्सत ही फुर्सत है
मत पूछो
यारी रखना
सहूर की बातें

अंजुमन में-
आज मेरी बात का उत्तर
दर बदर
फलक पे दूर
संगवारी को

मुक्तक में-
अपनी पलकें नहीं भिगोते

  संगवारी को

संगवारी को वही सहता रहा।
हाथ में जिसके सदा शीशा रहा।

लौट जाते तो बुरा लगता मुझे,
आप आये ही नहीं अच्छा रहा।

गुल गुलो गुलफाम के नगमें लिखे,
आँख में लेकिन सदा सहरा रहा।

मुश्किलों से ही मिली उसको सहर,
रात को जो रात ही कहता रहा।

१४ जुलाई २०१४

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