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अनुभूति में मोहित कटारिया की रचनाएँ-

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संकलन में-
ज्योति पर्व– दीप जलाने वाले हैं

 

आसमाँ

बादल कात कात के हवा ने
तेरे लिए 
बुना है इक आसमाँ 
अब पंख फैला
और उड़ चल।
यूँ कर अठखेलियाँ
जैसे ये तेरा बिछौना है
और तू है
दुनिया से अनजान
एक नन्हीं सी जान।

यूँ ओढ़ ले इसे 
कि तू अभी नहीं जाने है उड़ना
बना ले पंख
इस आसमाँ के
और उड़ चल।

यूँ चोंच में दबा ले
कोई कोना धरा का
कि इक हो जाएँ
धरती आसमाँ
पल भर के लिए।

आ देख तेरे लिए
खुला आसमाँ
लहराते आँचल की तरह
बिछा हुआ है
तेरी राह तकता।

९ नवंबर २००३

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